इससे पहले आपको UNIFORM CIVIL CODE का इतिहास,अर्थ, इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क आदि के बारे में बताया था। UCC के लागू होने से भारत में माने जाने वाले धर्मों पर प्रभाव के बारे में बतायेगे। आप (पक्ष और विपक्ष में तर्क) पर जाकर UCC के बारे में जान सकते हैं ?
भारत में विभिन्न जाति, धर्म, लिंग और समुदाय को मानने वाले लोग रहते हैं. और वे अपने अपने धार्मिक या सामुदायिक रीति रिवाज आदि को मानते रहे हैं. हर धर्म या समुदाय के अपने नियम अथवा रीति रिवाज हैं, जिसे एक समुदाय विशेष ही मानता है जबकि दूसरा समुदाय इससे पूर्णतया भिन्न है, लेकिन समान नागरिक संहिता यानी UCC लागू होने से सबके लिए एक समान कानून लागू होगा, जिसके फलस्वरूप हर धर्म या समुदाय पर कुछ ना कुछ प्रभाव अवश्य पड़ेगा.
हिंदू धर्म विवाह और विवाह विच्छेद के लिए HINDU MARRIAGE ACT 1955 और HINDU SECTION ACT 1956 को मानता है, HINDU MARRIAGE ACT 1955 को हिंदू के साथ-साथ बौद्ध जैन और सिख समुदाय भी मानता है किंतु HINDU MARRIAGE ACT 1955 के 2(ख) में कहा गया है कि यह प्रावधान आदिवासी समुदाय पर लागू नहीं होंगे. HINDU MARRIAGE ACT 1955 बौद्ध, जैन और सिख धर्म को मानने वाले ऐसे युवक-युवतियों को विवाह की अनुमति देता है. जिसमें वर और वधु की न्यूनतम आयु 21 वर्ष हो, ऐसे युवक और युवतियां आपसी या पारिवारिक सहमति से विवाहकर एक दूसरे तथा समाज के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकते हैं.
इसमें कुछ ऐसे संस्कार भी हैं जो केवल विवाहित जोड़े ही पूरे कर सकते हैं. HINDU MARRIAGE ACT 1955 में विवाह के साथ-साथ हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13 के अनुसार विवाह विच्छेद का भी प्रावधान किया गया है. जिसे अपनाकर युवक युक्तियां एक दूसरे से अलग हो सकते हैं.
यदि विवाहित युवक युवतियों में वैचारिक मतभेद है, जिसको लेकर उनमें आपसी टकराव होते रहते हैं और वे दोनों एक-दूसरे के साथ रहना नहीं चाहते, तो आपसी सहमति के आधार पर हिंदू मैरिज एक्ट 1955 उन्हें विवाह विच्छेद की अनुमति देता है
यदि किसी विवाहित युवक या युवती को लगे कि उसका जीवन साथी व्यभिचारी है अर्थात उस पुरुष या स्त्री का का किसी अन्य पुरुष अथवा स्त्री से संबंध है ऐसी स्थिति में युवक या युवती विवाह विच्छेद कर सकते हैं.
यदि किसी स्त्री या पुरुष के प्रति उसके जीवन साथी द्वारा क्रूरता पूर्वक व्यवहार किया जा रहा है तो वह स्त्री या पुरुष विवाह विच्छेद कर सकता है.
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के आधार पर विवाहित स्त्री अथवा पुरुष अगर धर्मांतरण कर लेता है, तो दूसरा व्यक्ति हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के अनुसार विवाह विच्छेद कर सकता है.
विवाहित जोड़ों में से अगर कोई एक अन्य दूसरे व्यक्ति का परित्याग कर दे, तो वह पीड़ित व्यक्ति विवाह विच्छेद कर सकता है.
विवाहित जोड़े में से किसी एक को यदि कोई मानसिक विकार हो जाए और अन्य दूसरे व्यक्ति का उसके साथ रहना, असहज हो तो वह व्यक्ति भी विवाह विच्छेद कर सकता है.
हिंदू मैरिज एक्ट केवल हिंदू ,बौद्ध, जैन और सिख समुदाय के लोगों पर लागू होता है, जबकि इसी एक्ट के खंड-2 में यह नियम है कि यह एक्टआदिवासियों पर लागू नहीं होगा. ऐसे में समान नागरिक संहिता(यूसीसी) लागू होने पर हिंदू बौद्ध जैन और सिख समुदाय के साथ-साथ आदिवासी समुदाय भी यूसीसी के दायरे में आ जाएंगे.
भारतीय मुसलमानों के लिए एक विशेष कानून लागू करने के उद्देश्य से मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट 1937 पास किया गया. मुस्लिमों के शादी, तलाक, विरासत आदि के फैसले इसी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत किये जाते है. इसी एक्ट के तहत मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को प्रत्यक्ष मौखिक रूप से अथवा किसी पत्र आदि माध्यम से तलाक तलाक कहकर तलाक को बाजीव ठहरा सकता है.(यह कानून 2017 एक्ट के तहत निषिद्ध है) ओर इसी कानून कि बदौलत एक मुस्लिम व्यक्ति Polygamy यानि बहू पत्नी विवाह कर सकता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार ये अधिकार केवल पुरुषों को ही दिए गए हैं.
लेकिन ucc लागू होने से तीन तलाक समाप्त होने के साथ-साथ महिलाओ को भी पुरुषों की भांति तलाक देने का अधिकार प्राप्त होगा और मुस्लिम बहू पत्नी विवाह प्रथा भी समाप्त हो जाएगी.
सिख धर्म में विवाह को लेकर आनंद मैरिज एक्ट 1909 बनाया गया, किंतु इस अधिनियम में विवाह विच्छेद का उल्क्योंलेख नहीं है,चूकी सिख धर्म विवाह या विवाह विच्छेद के मामले में प्राय हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 को मान्यता देता है अतः यूसीसी लागू होने से सिख धर्म पर बही प्रभाव पड़ेगा जो हिन्दू मैरिज एक्ट पर पड़ेगा .
भारत में रह रहे पारसी संप्रदायों के अपने पर्सनल लॉ है. परसों में विवाह एवं विवाह विच्छेद से संबंधित पारसी मैरिज एंड डिवोश एक्ट 1936 बनाया गया.इसके साथ ही पारसियों में गोद लेने से संबंधित अलग ही प्रावधान है. जैसे यदि कोई पारसी महिला धर्तुमांतरण कर शादी कर ले तो वह पारसी ला के अनुसार सारे अधिकार खो देती है. पारसी धर्म में गोद ली हुई बेटी को किसी प्रकार का कोई हक नहीं है, जबकि गोद लिया हुआ बेटा केवल पिता का अंतिम संस्कार कर सकता है. अतः यूसीसी के लागू होने से ये सारे कानून अपनेआप समाप्त हो जायेगे.
यूसीसी लागू होने से ईसाई धर्म में मुख्यतः उत्तराधिकार, विरासत, गोद लेना आदि परंपराओं पर प्रभाव पड़ेगा. Christian divorce लॉ के सेक्शन 10 के तहत यदि विवाहित जोड़ा अलग होना चाहता है तो उन्हें divorce के 2 साल पहले से अलग रहना होगा, वही मां का मृत बच्चो कि सम्पति में कोई अधिकार नहीं होगा, ऐसी संपत्ति सिर्फ पिता को मिलती है, अतः यूसीसी (समान नागरिक संहिता) लागू होने पर यह तमाम प्रथाएं समाप्त हो जाएंगी.
साथियों इस लेख के माध्यम से हमने भारत में माने जाने वाले विभिन्न धर्मों के बारे में जाना, जो विभिन्न मान्यता एवं परंपराएं रखते हैं. और हम निष्कर्ष रूप में कह भी सकते हैं कि प्रत्येक धर्म के नियम कानून कहीं ना कहीं पुरुष प्रधान ही हैं जबकि सामान नागरिकता संहिता लागू होने से यह सब कानून समाप्त हो जाएंगे और महिलाओं को भी पुरुषों की भांति ही समान अधिकार प्राप्त होंगे. जैसा की भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 में बिना किसी लैंगिक, स्थान या भाषा के आधार पर समान अधिकार की व्याखा हैं.
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